गुरुवार, 4 जनवरी 2018

सुकून

कफ़न के कपड़ो में ये कैसा सुकून है...

जो भी ओढ़ता है.. चैन से सो जाता है...

जितनी भीड़ बढ़ रही है ज़माने में...

लोग उतनें ही अकेले होते जा रहे है...

           
बेशक माँ का रूतबा बहुत होता है...

लेकिन बाप फरिश्तोँ से कम नहीँ होते...

             
व्यक्त्ति जितना ईमानदार होता है...

उसकी तक़दीर उतनी ही खराब होने की संभावना होती है...

           
इन्सान कहता है कि पैसा आये तो मै कुछ करके दिखाऊ...

और पैसा कहता है कि तू कुछ करके दिखाए तो मैं आऊ...

हर ख्वाब के मुकद्दर में हकीकत नही होती...

कुछ ख्वाब ज़िन्दगी में ख्वाब ही रह जाते है...

कौन कहता है कि फरिश्ते स्वर्ग में बसते है...

कभी अपनी माँ को ध्यान से देखा है...

मत पूछना मेरी शख्सियत के बारे में ..

हम जैसे दिखते है वैसे ही लिखते है ।

लगता है दिल ने तालुक अभी नहीं तोड़ा,

तेरे नाम पे आंखे अब भी भर आती हैं..!!
अफ़सोस....
मैं कोई छोटी सी कहानी नहीं था....
बस तुमने ही पन्ने ज़ल्दी पलट दिए....

लगे हो ना #भूल जाने में मुझे ?
#मासूम सी दुआ है, #नाक़ाम रहो तुम.

ख्वाहिशें मेरी “अधुरी” ही सही पर ..
कोशिशे मै “पूरी” करता हूं….

हीरों की बस्ती में हमने कांच ही कांच बटोरे हैं,
कितने लिखे अफ़साने, फिर भी सारे कागज़ कोरे हैं....

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