किसको फिक्र है कि "कबीले"का क्या होगा..!*
*सब लड़ते इस पर हैं कि "सरदार" कौन होगा..!!
खुश हूँ अपनी छोटी सी पर सच्ची कामयाबी से...*
*कदमों की रफ़्तार धीमी जरूर है पर जितनी है..
*अपने जमीर के साथ है..!!
वो बुलंदियाँ भी*
*किस काम की मित्रों ,
*इंसान चढ़े और
*इंसानियत उतर जाये
किससे सीखू मैं रब की बंदगी,*
*सब लोग रब का बटवारा किये बैठे है.
*जो लोग कहते है, रब कण कण मे है,
*वही मंदिर ,मस्जिद ,गुरुद्वारा लिए बैठे है!
जिम्मेदारियों के घुंघरू बंधे हैं
मुजरा-ए-रोजगार जारी है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें