मंगलवार, 18 सितंबर 2018

संगदिल ज़माने को रिझाना ना आया

संगदिल ज़माने को रिझाना ना आया
सब कुछ सीखा बस भजन गाना ना आया

कहा था किसी ने के सीख लो शायरी
ये रास्ता माक़ूल हे मोहब्बत पाने को
फिर हमने अश्क़ भी लिखे अशआर भी लिखे
और तो और रूमानियत से भरे क़रार भी लिखे
पर यह रास्ता भी कोई काम ना आया
मोहब्बत की राहों मे कोई मुक़ाम ना आया

फिर कहा किसी में चित्रकारी सीखो
तो शायद कुछ पार पड़े
मोहब्बत की गुलमोहर
शायद इस बार झडे
जंगल, पहाड़ से राणा प्रताप तक
सर्द रातों से ले सुर्ख़ महताब तक
सब कुछ बनाया पर काम ना आया
इसबार भी मोहब्बत में मुक़ाम ना आया

फिर कहा किसी ने की
किस्सागोई सीखो
ज़माने को यह बहूत लुभाती हैं
गर क़िस्सों में हो कशिश बराबर
तो सुना है दुनिया भागी चली आती है
तो हमने क़िस्से भी लिखे
इश्क़ के, तन्हाई के
मिलन के,जुदाई के
ख़ुशियों कें तो कभी
ग़म की गहरी खाई के
पर यह हुनर भी कोई काम ना आया
मोहब्बत में कोई मुक़ाम ना आया

फिर कहा किसी ने
गर थोड़ा बनोगे सँवरोगे कुछ
अदाबते लाओगे तो इसबार
पक्का अच्छी सोहबतें पाओगे
फिर हमने टोपी पहनी, चश्मे लगाए
तरहा तरहा के जूते आज़माए
कभी ज़ुल्फ़ें गिरहगीर की
तो कभी ज़ुल्फ़ों में कुंतल बनायें
कभी धोती, कभी पतलून
कभी बंडी,कभी अचकन
गमछे से घुट्टने तक सभी आज़माया
पर मोहब्बत में अभी भी मुक़ाम ना आया

फिर कहा किसी ने बनो फोटोजेनिक
कुछ अलहदा तस्वीरें खिंचावाओ
यह भी इक रास्ता है इसे भी आज़माओ
फिर कभी पहाड़ों में तो झाड़ो में
कभी नदियों में तो कभी खाडो में
रेगिस्तान से ले सागर किनारे तक
मंदिर,  से ले गुरूद्वारे तक
कभी पूजा में कभी इबादत में
किले,महलों से ले हर इमारत में
बादलों के पार से लेकर उड़न खटोले तक
दुर्घटना में अस्पताल के ट्रोले तक
एक्शन में, ट्रेकशन में, फ़िक्शन में, इमोशन में
हर अदा में अलहदा तस्वीरें खिचवाई पर
खुदा क़सम मंज़िल इसबार भी हाथ ना आयी

अब सुन रहा हूँ की यह सब तो फ़िज़ूल था
खुदा को इबादत में सिर्फ भजन ही क़बूल था
बस यूँ ही गुज़ार दी ये ज़िंदगी
मोके मिले पर भुनाना ना आया
सब कुछ सीखा बस भजन गाना ना आया
इस संगदिल ज़माने को रिझाना ना आया

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