गुरुवार, 5 जुलाई 2018

लफ़्ज़ क्यों शहद हुए.....

तेरा चेहरा , तेरी बातें , तेरी यादें ...

इतनी दौलत पहले कहाँ थी पास मेरे !!
​​​
ये लफ़्ज़ क्यों
शहद
हुए जा रहे है

कौन छू गया
हमारी
नज़्मों को होंठो से अपने......!!

मेरी गुस्ताखियों को तुम माफ़ करना ऐ दोस्त,

मै तुम्हें तुम्हारी इजाजत के बिना भी याद करता हूँ..
खुद का ख्याल मैंनें इसलिए भी रख लिया

कि दूर कोई जी रहा है मेरी खैरियत देखकर

मासूम मोहब्बत का बस इतना फसाना है,
कागज़ की हवेली है बारिश का ज़माना है.

रह के सीने में मेरे तेरा तरफ़-दार है दिल

सारी पट्टी तेरी  आंखों की पढ़ाई हुई हैं

कलम से खत लिखने का रिवाज फिर आना चाहिए साहिब,

ये चैटिंग की दुनिया बड़ा फरेब फैला रही है...!!

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