बुधवार, 4 जुलाई 2018

मंज़र भी बेनूर....

  "मंज़र भी बेनूर थे और फिज़ाएँ भी बेरंग थी,
बस दोस्त याद आए और मौसम सुहाना हो गया"

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तमन्ना है, इस बार बरस जाये ईमान की बारिश*

*लोगों के ज़मीर पर
*धूल बहुत है.

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आज फिर से छाये है उनकी रहमत से बादल..!!

किस्मत में भीगना लीखा है या तरसना, खुदा जाने..!!
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आदत नहीं है मुझे सब पे फ़िदा होने की पर तुझ में,

कुछ बात ही ऐसी है की दिल को समझने का मौका ही नहीं मिला।
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दर्द आँखों से निकला, तो सब ने कहा कायर है ये*

*दर्द अल्फ़ाज़ में क्या ढला, सबने कहा शायर है ये
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बेहतरीन होता है वो रिश्ता.........

*जो तकरार होने के बाद भी सिर्फ एक मुस्कुराहट पर पहले जैसा हो जाए...........!!!

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" निखरती है मुसीबतों से ही!
*शख्सियत यारों !!*
*जो चट्टान से ही ना उलझे!*
*वो झरना किस काम का!!"*

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अपने कर्म पर विश्वास रखिए
              *राशियों पर नही.!
    *राशि तो राम और रावण की भी
                 *एक ही थी.!
       लेकिन नियती ने उन्हें फल
        उनके कर्म अनुसार दिया

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मिल जाता है दो पल का सुकूंन इस मोबाईल की बंदगी में !!*

*वरना परेशां कौन नहीं अपनी-अपनी ज़िंदगी में ??
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आँखो पे इलजा़म ख़ूब लग गए,

आओ अब गुनाह इशारों से करें...
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चुपके चुपके दिल
मिलने दो....धड़कन
से कहो शोर न हो....

तुम हो... मैं हूँ ...
और ये शमाँ हो...
दूर-दूर तक कोई और न हो...

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