सोमवार, 22 जनवरी 2018

गुनाह

शिद्दत-ए-दर्द-में कमी ना आई जरा भी,

दर्द, दर्द ही रहा’

उल्टा भी लिखा सीधा भी लिखा”

दीदार की ‘तलब’ हो तो

नज़रे जमाये रखना ‘ग़ालिब’

क्युकी, ‘नकाब’ हो या ‘नसीब’…

सरकता जरुर है..!!

खुदा जाने कौन सा गुनाह कर बैठे है हम कि,. . .

तमन्नाओं वाली उम्र में तजुर्बे मिल रहे है ।

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