समंदर को सुखाना चाहता है,
मुझे इतना रुलाना चाहता है.
ये सहरा किस क़दर प्यासा हुआ है,
मुझे कतरा बनाना चाहता है.
मेरी तकदीर का कायल है फिर भी ,
मुझे वो आज़माना चाहता है.
बहुत नज़दीक मेरे आ रहा है,
वो शायद दूर जाना चाहता है.
भटकने के अज़ब इक शौक में वो,
मुझे जंगल बनाना चाहता है.
नहीं मुझमे बसेगा वो कभी भी,
फकत कुछ दिन बिताना चाहता है.
जुदा तो हो गया है कब का मुझसे,
बिछुड़ने का बहाना चाहता है.
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