सोमवार, 11 दिसंबर 2017

कोरा कागज़

कोरा कागज़ था और कुछ बिखरे हुए लफ़्ज़*

ज़िक्र तेरा आया तो सारा कागज़ गुलाबी हो गया*

वजह की तलाश में,*
वक्त ना गवाया करो..*

वेवजह, बेपरवाह, बेझिझक..!*
बस मुस्कुरा के बोल दिया करो...*

हमारे बाद अब महफ़िल में अफ़साने बयां होंगे...
बहारें हमको ढूँढेंगी न जाने हम कहाँ होंगे

इसी अंदाज़ से झूमेगा मौसम, गाएगी दुनिया
मोहब्बत फ़िर हसीं होगी, नज़ारे फ़िर जवाँ होंगे

न तुम होगे न हम होंगे, न दिल होगा मगर फ़िर भी
हज़ारों मंजिलें होंगी हज़ारों कारवां होंगे।

उड़ ना जाएँ कहीं खुशबुएँ तेरी....

ये सोच कर उस चादर की मैंने....   कभी तहें नहीं खोली.....

कैसे मुमकिन था किसी दाक्तर से इलाज करना

अरे दोस्त…. इश्क का रोग था…

मम्मी के चप्पल से ही आराम आया….

ना जाने कौनसी, दौलत हैं.........*

*कुछ  लोगों के ,लफ़्जों में.........

*बात करते है तो.......

*दिल ही खरीद लेते हैं .......!!!

यूँ असर डाला है-*
*मतलबी लोगों ने दुनिया पर ...

*प्रणाम भी करो तो-
*लोग समझते हैं कि
*जरूर कोई काम होगा!

बुरे वक्त सा हो गया हूँ मैं...
हर कोई भुलाने में लगा है...

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