गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

गुरूर

मुट्ठी में लिये कब्र की खाक
मैं ये सोचता हूँ फ़राज..!

इंसान जब मर जाते हैं, तो गुरूर कहाँ जाता है..!!

क्यूँ शर्मिंदा करते हो रोज...हाल हमारा पूँछ कर.....

हाल हमारा वही है...जो तुमने बना रखा है.....

इक पथ्तर भी बेवफा हो तो...

वो पूरी दीवार गिरा देता है...

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