सोमवार, 25 दिसंबर 2017

तज़ुर्बा

आँखों की झील से दो कतरे क्या निकल पड़े,*
*मेरे सारे दुश्मन एकदम खुशी से उछल पडे़।*
[

फ़ासला भी ज़रूरी था.. चिराग़ रौशन करते वक़्त*
*ये तज़ुर्बा हासिल हुआ.. हाथ जल जाने के बाद।

ठहाके छोड़ आये हैं अपने कच्चे घरों मे हम*....

*रिवाज़ इन पक्के मकानों में बस मुस्कुराने का है

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