दिल की बातें दिल में ही छुपाये रखता हूँ ,
खामोशी को ही अपने अल्फाज़ बनाए रखता हूँ ॥
बेरंग सी लगने लगी है अब ये दुनिया ,
मै श्यामल-श्वेत को ही अपना आसमान बनाए रखता हूँ ॥
सुना है आनंदमय होती हैं बारिश की बूंदे, पर
मै पतझड़ को ही अपनी बरसात बनाए रखता हूँ ।
बडी़ दूर आ गया हूँ विराने रेत के सफर में,
साया खुद का भी दिख जाये तो ज्यदा देर टिकता नहीं,
कहीं कोई और ना आ जाये पिछे मेरे इन निशानों के सहारे ,
ये सोच के अपने हर निशान मिटाये रखता हूँ ॥
शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017
खामोशी
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संगदिल ज़माने को रिझाना ना आया
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