शमशान की राख देख कर मन में
एक ख्याल आया
सिर्फ राख होने के लिए इंसान जिंदगी भर
दूसरों से कितना जलता है
मैंने भी अपनी ज़िन्दगी का बहुत दूर तक पीछा किया,
ये अलग बात हैं कि वो खुद किसी की तलाश में थी।
होता अगर मुमकिन, तुझे साँस बना कर रखते सीने में,
तू रुक जाये तो मैं नही, मैं मर जाऊँ तो तू नही
ईश्क की लौ है दिल पे लगाते हैं
वो फिर से बुझाते हैं हम फिर से जलाते हैं...
"मरीज-ए-मोहब्बत हूं,
इक तेरा दीदार काफी है,"
"हर एक दवा से बेहतर,
निगाहे-ए-यार काफी है"
सुनहरा दिन यूँ इतरा के
संवर के यार सा निकला
महकती सर्द फिजाओं संग
मेरे दिलदार सा निकला...!!
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