रविवार, 19 नवंबर 2017

बेपनाह मोहब्बत

पहले इश्क़ को आग होने दीजिए
फिर  दिल को राख होने दीजिए

तब जाकर पकेगी बेपनाह मोहब्बत
जो भी हो रहा बेहिसाब होने दीजिए

सजाएं मुकर्रर करना इत्मिनान से
मगर पहले कोई गुनाह होने दीजिए

मैं भूला नहीं बस थोड़ा थक गया था
लौट आऊंगा घर शाम होने दीजिए

चाँद के दीदार की चाहत दिल में जगी है
आयेगा नज़र वो, रात होने दीजिए

जो नदियां सूख गयी हैं इंतज़ार में
वो भी भरेंगी बस बरसात होने दीजिए

नासमझ, पागल, आवारा, लापरवाह हैं जो
संभल जाएंगे वो भी एहसास होने दीजिए

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