मेरी मोहब्बत की ना सही, मेरे सलीके की तो दाद दे.
तेरा जिक्र रोज करते हैं, तेरा नाम लिए बगैर.!
*तुम्हारी खुशबु कंही नही मिलती
*फूल सारे खरीद के देखे है मेने
मजबूरियां तुम्हारी थी,*
*और
*तनहा हम हाे गऐ...!!!
मेरा क़ातिल भी परेशां है मेरे दोस्तों की दुआओं से.......!
*के जब भी वार करता है, ख़ंजर टूट जाता है ...
!!!
दिल मे ना जाने कैसे तेरे लिए इतनी जगह बन गई,*
*तेरे मन की हर छोटी सी चाह मेरे जीने की वजह बन गई
दर्द ऐसे पीछे पड़ा है ...*
*जैसे मैं उसकी पहली मोहब्बत हूँ...
आज तक बहुत भरोसे टूटे,
*मगर भरोसे की आदत नहीं छूटी!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें