मंगलवार, 21 नवंबर 2017

आदत

मेरी मोहब्बत की ना सही, मेरे सलीके की तो दाद दे.

तेरा जिक्र रोज करते हैं, तेरा नाम लिए बगैर.!

*तुम्हारी खुशबु कंही नही मिलती

*फूल सारे खरीद के देखे है मेने

मजबूरियां तुम्हारी थी,*
*और
*तनहा हम हाे गऐ...!!!

मेरा क़ातिल भी परेशां है मेरे दोस्तों की दुआओं से.......!

*के जब भी वार करता है, ख़ंजर टूट जाता है ...
!!!

दिल मे ना जाने कैसे तेरे लिए इतनी जगह बन गई,*
*तेरे मन की हर छोटी सी चाह मेरे जीने की वजह बन गई
दर्द ऐसे पीछे पड़ा है ...*

*जैसे मैं उसकी पहली मोहब्बत हूँ...

आज तक बहुत भरोसे टूटे,

*मगर भरोसे की आदत नहीं छूटी!

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