सोमवार, 22 जनवरी 2018

सांकल की बोली

दरवाज़े प्रैक्टिकल होतें हैं_
_और खिड़कियाँ भावुक,

_दरवाज़े सिर्फ समझते हैं
_सांकल की बोली
_पैरों की आहटें,

_खिड़कियां पहचानती हैं
_दबे पाँव पुरवाई का
_चुपके से अंदर आ जाना,
_सवेरे की किरणों का
_भीतर तक उतर जाना,

_परिंदों का राग,
_मौसमों का वैराग,
_बादल की आवारगी,
_बूंदो की सिसकियाँ,
_घटते बढ़ते चाँद की
_ लम्बी-छोटी रातें,
_चांदनी के सज़दे,
_और टूट जाना किसी तारे का,
_खिड़कियाँ सब जान जाती हैं;

_दरवाज़े होते हैं सख्त,
_मजबूत
_नींबू-मिर्ची से सजे धजे
_अक्खड़ किसी दरबान से,

_खिड़कियाँ होती है
_अल्हड़,
_नादान और सहज;
_उनपर नही लिखना पड़ता,
_*"स्वागतम्"!

घुंघरू

किसको फिक्र है कि "कबीले"का क्या होगा..!*

*सब लड़ते इस पर हैं कि "सरदार" कौन होगा..!!

खुश हूँ अपनी छोटी सी पर सच्ची कामयाबी से...*

*कदमों की रफ़्तार धीमी जरूर है पर जितनी है..
*अपने जमीर के साथ है..!!

वो बुलंदियाँ भी*
*किस काम की मित्रों ,
*इंसान चढ़े और
*इंसानियत उतर जाये

किससे सीखू मैं रब की बंदगी,*
*सब लोग रब का बटवारा किये बैठे है.

*जो लोग कहते है, रब कण कण मे है,
*वही मंदिर ,मस्जिद ,गुरुद्वारा लिए बैठे है!

जिम्मेदारियों के घुंघरू बंधे हैं

मुजरा-ए-रोजगार जारी है

याद करने की.........

तुम भी समझ रहे हो…हम भी समझ रहे हैं…
फिर दिल के सवालों में हम क्यों उलझ रहे हैं…!!

यूँ ही किसी के नाम को, किसी के नाम से, जोड़ा नहीं जाता...!!!
.
.
.
.
.
*किसी के जज़्बात बिखर जाते हैं, और किसी का, कुछ नहीं जाता...!!!

वो अता करे तो शुक्र उसका*,
*वो न दे तो कोई मलाल नहीं

*मेरे रब के फ़ैसले कमाल हैं,
*उन फ़ैसलों पे कोई सवाल नहीं

तुम्हारा ख़याल है, या पशमीने का शाल ......

इन सर्दियो में लिहाफ कि तरह ओढे हुए हूँ मैं......❤

हैं जिनके पास अपने*,
         *वो अपनों से झगड़ते हैं...

*नहीं जिनका कोई अपना,
          *वो अपनों को तरसते हैं..।

लफ़्ज़ों के बोझ से,*
*थक जाती हैं ज़ुबान कभी कभी..

*पता नहीं खामोशी,
*मज़बूरी हैं या 'समझदारी' !!

ज़रा सी फुर्सत◆निकाल कर◆हमारा क़त्ल ही कर दो.★

यूँ तेरे इन्तजार में
◆तड़प-तड़प के मरना◆
हमसे नहीं होता.

एक ‪ज़ख्म‬ नहीं यहाँ तो सारा ‪वजूद‬ ही ज़ख्मी है,*

*दर्द भी ‪हैरान‬ है की उठूँ तो कहाँ से उठूँ !!

सारी उम्र हम..........*

*मरने की दुआ करते रहे..........

*और जब जीना चाहा.........

*दुआ क़ुबूल हो गयी...........!!!

कभी कभी हम "दिल" के "हालात" भी "लिखते" हैं,

हर वक़्त "वाह वाह' की "ख्वाहिश" नहीं होती...

इज़ाज़त हो तो लिफाफे में रखकर.......*

*कुछ वक़्त भेज दूं.........

*सुना है कुछ लोगों को फुर्सत नहीं है..........

*अपनों को याद करने की............!!!

गुनाह

शिद्दत-ए-दर्द-में कमी ना आई जरा भी,

दर्द, दर्द ही रहा’

उल्टा भी लिखा सीधा भी लिखा”

दीदार की ‘तलब’ हो तो

नज़रे जमाये रखना ‘ग़ालिब’

क्युकी, ‘नकाब’ हो या ‘नसीब’…

सरकता जरुर है..!!

खुदा जाने कौन सा गुनाह कर बैठे है हम कि,. . .

तमन्नाओं वाली उम्र में तजुर्बे मिल रहे है ।

रविवार, 7 जनवरी 2018

ख्वाहिश

गैरो ने नसिहत दी,, और दिया अपनो ने धोखा...

*ये दुनिया है साहब, यहाँ चाहिए हर किसी को मौका
    
सुनो '''तुम लाख छुपाओ...मुझसे जो रिश्ता है....तुम्हारा,....

सयाने कहते हैं ...नजर अंदाज... करना भी...मुहब्बत है ....!

         
ये अमिर लोग जिस फटी हुई जीन्स,
को पहनकर बड़ी बड़ी पार्टियों में,
जाते है,

उस फटी जीन्स को पहनकर हम,
गाँव के लड़के गेहू काटते हैं..

एक अच्छा रिश्ता
हवा की तरह होना चाहीए
खामोश
हमेशा आसपास !!

कड़वा है,फीका है*,
*शिकवा क्या कीजिये.

*जीवन समझौता है,
*घूँट-घूँट पीजिये.....!!

शर्मों हया से उनकी पलकों का झुकना इस तरह ”

जैसे कोई फूल झुक रहा हो एक तितली के बोझ से।

कहते हैं

      जो हँसा, उसका घर बसा़।

             पर जिसका घर बसा, उससे पूछो......

वह फिर कब हँसा??

जायां ना कर अपने अल्फाज किसी के लिए,*
*खामोश रह कर देख तुझे समझता कौन है।।

घर अपना बना लेते हैं, जो दिल में हमारे,*
*हम से वो परिंदे, उड़ाये नहीं जाते..!!

आँखे आपकी हो*

*या मेरी हो. . .

*बस इतनी सी ख्वाहिश है

*कभी नम न हो. . .

...मर गए

"कभी नोटो के लिए मर गए,
कभी वोटो के लिए मर गए,

कभी जात-पात के नाम पर मर गए,
कभी आपस मे 2 गज जमीनो के लिए मर गए,

होते अगर आज वीर भगत सिहँ तो कहते... यार सुखदेव...
हम भी किन कमीनो के लिए मर गए" !!!

जिंदगी की लड़ाई

अकेले ही लड़नी होती है,
जिंदगी की लड़ाई क्योंकि लोग
सिर्फ तसल्ली देते है साथ नही।
“शिक्षक” और “सड़क”
दोनों एक जैसे होते हैं
खुद जहाँ है वहीं पर रहते हैं
मगर दुसरो को उनकी
मंजिल तक पहुंचा हीं देते हैं!
अभ्यास हमें बलवान बनाता हैं,
    दुःख हमें इंसान बनाता हैं,
  हार हमें विनम्रता सिखाती हैं,
              जीत हमारे
     व्यक्तित्व को निखारती है,
                  लेकिन
         सिर्फ़ विश्वास ही है,
                  जो हमें
    आगे बढने की प्रेरणा देता है.
              इसलिए हमेशा
अपने लोगों पर अपने आप पर
         और अपने ईश्वर पर
      विश्वास रखना चाहिए

संगदिल ज़माने को रिझाना ना आया

संगदिल ज़माने को रिझाना ना आया सब कुछ सीखा बस भजन गाना ना आया कहा था किसी ने के सीख लो शायरी ये रास्ता माक़ूल हे मोहब्बत पाने को फिर हमन...