बड़ा ही खामोश सा अंदाज़ है तुम्हारा
समझ नही आता फ़िदा हो जाऊ या फना हो जाऊ
हमें हो गया है शौक पराए गम अपनाने का........
जहाँ फिक्र तेरी होगी.....वहाँ जिक्र मेरा होगा...........
हवाओं ने शहर भर में धुँए का करोबार कर रखा है……
किसी का दिल जले या घर क्या फ़र्क़ पङता है……
मे तो दिया हूँ मेरी दुश्मनी अँधेरों से है……
हवा तो बेवजह ही मेरे ख़िलाफ़ है……
एक टुकड़ा इश्क ..
कुछ बुँदे चाहत की …
और मासूम सी भीगी तेरी मुस्कान..!
दिन यु गुजर जाते ...
तो जिंदगी जन्नत होती जनाब …!!
कभी दिमाग, कभी दिल, कभी नज़र मे रहो ।।।
ये सब तुम्हारे ही घर है, किसी घर मे रहो! !!!!!
एहसास ए मुहब्बत के लिए बस इतना ही काफी है,
तेरे बगैर भी हम, तेरे ही रहते हैं..!!
उम्मीद के दिलकश पनघट पे हम शमा जलाये बैठे हैं,,
वो वादा कर के भूल गए और हम आस लगाए बैठे हैं,,
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