बुधवार, 11 अक्टूबर 2017

दिलकश

बड़ा ही खामोश सा अंदाज़ है तुम्हारा
समझ नही आता फ़िदा हो जाऊ या फना हो जाऊ

हमें हो गया है शौक पराए गम अपनाने का........
जहाँ फिक्र तेरी होगी.....वहाँ जिक्र मेरा होगा...........

हवाओं ने शहर भर में धुँए का करोबार कर रखा है……
किसी का दिल जले या घर क्या फ़र्क़ पङता है……

मे तो दिया हूँ मेरी दुश्मनी अँधेरों से है……
हवा तो बेवजह ही मेरे ख़िलाफ़ है……

एक टुकड़ा इश्क ..
कुछ बुँदे चाहत की …
और मासूम सी भीगी तेरी मुस्कान..!

दिन यु गुजर जाते ...
तो जिंदगी जन्नत होती जनाब …!!

कभी दिमाग, कभी दिल, कभी नज़र मे रहो ।।।

ये सब तुम्हारे ही घर है, किसी घर मे रहो! !!!!!

एहसास ए मुहब्बत के लिए बस इतना ही काफी है,

तेरे बगैर भी हम, तेरे ही रहते हैं..!!

उम्मीद के दिलकश पनघट पे हम शमा जलाये बैठे हैं,,

वो वादा कर के भूल गए और हम आस लगाए बैठे हैं,,

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

संगदिल ज़माने को रिझाना ना आया

संगदिल ज़माने को रिझाना ना आया सब कुछ सीखा बस भजन गाना ना आया कहा था किसी ने के सीख लो शायरी ये रास्ता माक़ूल हे मोहब्बत पाने को फिर हमन...