बुधवार, 11 अक्टूबर 2017

बाज़ी

*दिल के सच्चे लोग,*
*कुछ एहसास लिखते है,,,*

*मामूली शब्दों में ही सही,*
*पर कुछ खास लिखते है,,,,*

*लम्हे फुर्सत के आएं तो*
*रंजिशें भुला देना दोस्तों*

*किसी को नहीं खबर कि*
*सांसों  की मोहलत कहां तक है*

*दिल के सच्चे लोग,*
*कुछ एहसास लिखते है,,,*

*मामूली शब्दों में ही सही,*
*पर कुछ खास लिखते है,,,,*

*लम्हे फुर्सत के आएं तो*
*रंजिशें भुला देना दोस्तों*

*किसी को नहीं खबर कि*
*सांसों  की मोहलत कहां तक है*

*जिन्दगी को कभी तो खुला छोड़ दो जीने के लिए ....*_
                  
_*बहुत सम्भाल के रखी चीज़ वक्त पर नहीं मिलती ....!!!!*_

*पता नहीं क्यों लोग...*
*रिश्ते छोड़ देते हैं*
*लेकिन जिद नहीं..!*

*ऐ तकदीर.....*
*ला तेरे हाथों की उँगलियाँ दबा दूँ मैं..*
*थक गई होगी मुझे नचाते नचाते....

ज़िन्दगी ये मेरी और भी हसीं हो सकता था यारों अगर...
        कुछ अपनों की निगाहों में हम पराये न होते।।

*तू भी कभी महसूस कर क्या है बिखरने की तड़प….?*

*एक रोज़ बाज़ी यूँ सजे,शीशा तेरा पत्थर मेरा..!!*

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