ना ही शौक पूरे हुए , ना मुक़म्मल जिंदगी हुई
ये शहर-ऐ-जिंदगी ,
................ ज़िंदा रहने में ही चली गई ।।
मिला मौका जब दिल-ऐ-अरमान कहने का,
होठो तक आते आते ,ज़िन्दगी ही चली गयी
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संगदिल ज़माने को रिझाना ना आया
संगदिल ज़माने को रिझाना ना आया सब कुछ सीखा बस भजन गाना ना आया कहा था किसी ने के सीख लो शायरी ये रास्ता माक़ूल हे मोहब्बत पाने को फिर हमन...
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दरअसल तुम सिर्फ वो जानते हो...जो मेरे लफ़्ज़ कहते हैं. मेरी हिचक , अफसोस और तलब तो बेजुबान हैं.
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