गुरुवार, 22 मार्च 2018

मुक़म्मल

ना ही शौक पूरे हुए , ना मुक़म्मल जिंदगी हुई
ये शहर-ऐ-जिंदगी ,
................     ज़िंदा रहने में ही चली गई ।।
मिला मौका जब दिल-ऐ-अरमान कहने का,
होठो तक आते आते ,ज़िन्दगी ही चली गयी

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