न चादर बड़ी कीजिये....
न ख्वाहिशें दफन कीजिये...
चार दिन की ज़िन्दगी है
बस चैन से बसर कीजिये...
न परेशान किसी को कीजिये
न हैरान किसी को कीजिये...
कोई लाख गलत भी बोले...
बस मुस्कुरा कर छोड़ दीजिये...
न रूठा किसी से कीजिये...
न झूठा वादा किसी से कीजिये..
कुछ फुरसत के पल निकालिये...
कभी खुद से भी मिला कीजिये...
मंगलवार, 21 अगस्त 2018
ख्वाहिशें
शुक्रवार, 6 जुलाई 2018
लफ़्ज़ क्यों शहद हुए.....
तेरा चेहरा , तेरी बातें , तेरी यादें ...
इतनी दौलत पहले कहाँ थी पास मेरे !!
ये लफ़्ज़ क्यों
शहद
हुए जा रहे है
कौन छू गया
हमारी
नज़्मों को होंठो से अपने......!!
मेरी गुस्ताखियों को तुम माफ़ करना ऐ दोस्त,
मै तुम्हें तुम्हारी इजाजत के बिना भी याद करता हूँ..
खुद का ख्याल मैंनें इसलिए भी रख लिया
कि दूर कोई जी रहा है मेरी खैरियत देखकर
मासूम मोहब्बत का बस इतना फसाना है,
कागज़ की हवेली है बारिश का ज़माना है.
रह के सीने में मेरे तेरा तरफ़-दार है दिल
सारी पट्टी तेरी आंखों की पढ़ाई हुई हैं
कलम से खत लिखने का रिवाज फिर आना चाहिए साहिब,
ये चैटिंग की दुनिया बड़ा फरेब फैला रही है...!!
गुरुवार, 5 जुलाई 2018
मंज़र भी बेनूर....
"मंज़र भी बेनूर थे और फिज़ाएँ भी बेरंग थी,
बस दोस्त याद आए और मौसम सुहाना हो गया"
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तमन्ना है, इस बार बरस जाये ईमान की बारिश*
*लोगों के ज़मीर पर
*धूल बहुत है.
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आज फिर से छाये है उनकी रहमत से बादल..!!
किस्मत में भीगना लीखा है या तरसना, खुदा जाने..!!
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आदत नहीं है मुझे सब पे फ़िदा होने की पर तुझ में,
कुछ बात ही ऐसी है की दिल को समझने का मौका ही नहीं मिला।
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दर्द आँखों से निकला, तो सब ने कहा कायर है ये*
*दर्द अल्फ़ाज़ में क्या ढला, सबने कहा शायर है ये
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बेहतरीन होता है वो रिश्ता.........
*जो तकरार होने के बाद भी सिर्फ एक मुस्कुराहट पर पहले जैसा हो जाए...........!!!
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" निखरती है मुसीबतों से ही!
*शख्सियत यारों !!*
*जो चट्टान से ही ना उलझे!*
*वो झरना किस काम का!!"*
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अपने कर्म पर विश्वास रखिए
*राशियों पर नही.!
*राशि तो राम और रावण की भी
*एक ही थी.!
लेकिन नियती ने उन्हें फल
उनके कर्म अनुसार दिया
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मिल जाता है दो पल का सुकूंन इस मोबाईल की बंदगी में !!*
*वरना परेशां कौन नहीं अपनी-अपनी ज़िंदगी में ??
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आँखो पे इलजा़म ख़ूब लग गए,
आओ अब गुनाह इशारों से करें...
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चुपके चुपके दिल
मिलने दो....धड़कन
से कहो शोर न हो....
तुम हो... मैं हूँ ...
और ये शमाँ हो...
दूर-दूर तक कोई और न हो...
शुक्रवार, 22 जून 2018
बेजुबान
दरअसल तुम सिर्फ वो जानते हो...जो मेरे लफ़्ज़ कहते हैं.
मेरी हिचक , अफसोस और तलब तो बेजुबान हैं.
रविवार, 27 मई 2018
प्यार की इक ग़ज़ल
मौत की बात ख्वाब लगती है
वो सभी को खराब लगती है
प्यार की इक ग़ज़ल सुनाओ फिर
खूबसूरत जनाब लगती है।
अक्स दिख जाए काँच में उनका
शायरी पुरशबाब लगती है
वो खुली सी किताब है दिल की
उसकी सूरत शराब लगती है।
मुस्कुराहट हो दरमियाँ ग़म के
जिन्दगी लाजवाब लगती है।
राह मुश्किल तभी चले सीधे
कंटकों में गुलाब लगती है।
शख्सियत वो जिसे सभी जाने
आज दीपा जनाब लगती है।
🎸दीपा परिहार 🎸
जोधपुर।
बुधवार, 9 मई 2018
आंधी
वो पेड़ अब भी मुस्कुरा रहें हैं, जिन्हें हुनर था थोडा झुक जाने का...!!
शुक्रवार, 23 मार्च 2018
महफ़िल में
ग़म छुपा कर मुस्कुराना पड़ता है
कभी हम भी उनके अज़ीज़ थे
आज-कल ये भी उन्हें याद दिलाना पड़ता है।
संगदिल ज़माने को रिझाना ना आया
संगदिल ज़माने को रिझाना ना आया सब कुछ सीखा बस भजन गाना ना आया कहा था किसी ने के सीख लो शायरी ये रास्ता माक़ूल हे मोहब्बत पाने को फिर हमन...
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न चादर बड़ी कीजिये.... न ख्वाहिशें दफन कीजिये... चार दिन की ज़िन्दगी है बस चैन से बसर कीजिये... न परेशान किसी को कीजिये न हैरान किसी को ...
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तेरा चेहरा , तेरी बातें , तेरी यादें ... इतनी दौलत पहले कहाँ थी पास मेरे !! ये लफ़्ज़ क्यों शहद हुए जा रहे है कौन छू गया हमारी ...
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दरअसल तुम सिर्फ वो जानते हो...जो मेरे लफ़्ज़ कहते हैं. मेरी हिचक , अफसोस और तलब तो बेजुबान हैं.