दरअसल तुम सिर्फ वो जानते हो...जो मेरे लफ़्ज़ कहते हैं.
मेरी हिचक , अफसोस और तलब तो बेजुबान हैं.
शुक्रवार, 22 जून 2018
बेजुबान
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संगदिल ज़माने को रिझाना ना आया
संगदिल ज़माने को रिझाना ना आया सब कुछ सीखा बस भजन गाना ना आया कहा था किसी ने के सीख लो शायरी ये रास्ता माक़ूल हे मोहब्बत पाने को फिर हमन...
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न चादर बड़ी कीजिये.... न ख्वाहिशें दफन कीजिये... चार दिन की ज़िन्दगी है बस चैन से बसर कीजिये... न परेशान किसी को कीजिये न हैरान किसी को ...
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तेरा चेहरा , तेरी बातें , तेरी यादें ... इतनी दौलत पहले कहाँ थी पास मेरे !! ये लफ़्ज़ क्यों शहद हुए जा रहे है कौन छू गया हमारी ...
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दरअसल तुम सिर्फ वो जानते हो...जो मेरे लफ़्ज़ कहते हैं. मेरी हिचक , अफसोस और तलब तो बेजुबान हैं.